समय - सियारामशरण गुप्त | Samay - Siyaramsharan Gupt

कविता, हिंदी कविता, हिंदी में कविता, poems in hindi, Hindi poems के लिए हमें सब्सक्राइब करें।

मैं हूँ एक, अनेक शत्रु हैं सम्मुख मेरे,
क्रोध, लोभ, मोहादि सदा रहते हैं घेरे।
परमपिता, इस भाँति कहाँ मुझको ला पटका,
जहाँ प्रतिक्षण बना पराभव का है खटका।

अथवा निर्बल समझ अनुग्रह है दिखलाया,
करने को बलवृद्धि अखाडे में पहुँचाया ।
सबल बनूँ मैं घात और प्रतिघात सहन कर,
ऊपर कुछ चढ सकूँ और दुख भार वहन कर ।

इस कठिन परीक्षा कार्य में,
हो जाऊँ उत्तीर्ण जब,
कर देना मानस सद्म में,
शांति सुगंधि विकीर्ण तब।

कवि के बारें में
सियाराम शरण गुप्त का जन्म 1895 ई0 में सेठ रामचरण गुप्त के पुत्र के रूप में चिरगाँव - झाँसी (उ0प्र0) में हुआ। इनका निधन 19 मार्च 1963 ई0 को हुआ। शिक्षा- आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में बाद में स्वाध्याय द्वारा। पूर्ण हुई। आपको हिन्दी, अँग्रेजी, गुजराती एवं बँगला भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। आपकी भाषा शैली सहज, सरल साहित्यिक खड़ीबोली हिन्दी है। आपने व्यावहारिक शब्दावली का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है। आपकी रचनाओं की शैली यथार्थ परक, सरस, वर्णनात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक एवं भावात्मक है। रचनाएँ-विषाद, आद्रा, अनाथ, उन्मुक्त, गोपिका, मृण्मयी, पुण्य पर्व, गोद, नारी, मानुषी, अन्तिम आकांक्षा, झूठ-सच आदि।


2 comments:

  1. Replies
    1. अगर आप कोई सुझाव या शिकायत दर्ज करवाना चाहते हैं तो नीचे दिए गए मैसेज बॉक्स से संदेश भेजे।

      Delete

Powered by Blogger.