अभी समय है, अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है - सियारामशरण गुप्त

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Importance of time
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अभी समय है, अभी नहीं कुछ भी बिगड़ा है,
देखो अभीसुयोग तुम्हारे पास खड़ा है,
करना है जो काम उसी ने अपना चित्त लगा दो,
अपने पर विश्वास करो, और संदेह भगा दो ।

पूर्ण तुम्हारा मनोमिष्ट, क्या कभी न होगा?
होगा तो बस अभी, नहीं तो कभी न होगा,
देख रहे हो श्रेष्ट समय के क्किस सपने को,
छलते हो यो हाय ! स्वयं ही क्यों अपने को ।

तुच्छ कभी तुम न समझो एक पल को भी,
पल – पल से ही बना हुआ जीवन को मानो तुम,
इसके सद्व्यय रूप नीर सिंचन के द्ववारा,
हो सकता है सफल जन्मतरु यहाँ तुम्हारा ।

ऐसा सुसमय भला और कब तुम पाओगे,
खोकर पीछे इसे सर्वथा तुम पछताओगे,
तो इसमें वह काम नहीं क्यों तुम कर जाओ,
हो जिसमे परमार्थ तथा तुम भी सुख पओगे ।

कवि के बारें में
सियाराम शरण गुप्त का जन्म 1895 ई0 में सेठ रामचरण गुप्त के पुत्र के रूप में चिरगाँव - झाँसी (उ0प्र0) में हुआ। इनका निधन 19 मार्च 1963 ई0 को हुआ। शिक्षा- आरम्भिक शिक्षा स्थानीय विद्यालय में बाद में स्वाध्याय द्वारा। पूर्ण हुई। आपको हिन्दी, अँग्रेजी, गुजराती एवं बँगला भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। आपकी भाषा शैली सहज, सरल साहित्यिक खड़ीबोली हिन्दी है। आपने व्यावहारिक शब्दावली का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है। आपकी रचनाओं की शैली यथार्थ परक, सरस, वर्णनात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक एवं भावात्मक है। रचनाएँ-विषाद, आद्रा, अनाथ, उन्मुक्त, गोपिका, मृण्मयी, पुण्य पर्व, गोद, नारी, मानुषी, अन्तिम आकांक्षा, झूठ-सच आदि।
विशेष- आप राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के छोटे भाई। भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति के पक्षधर। गाँधी जी के सत्य एवं अहिंसा के पोषक। अत्यन्त सरल और सौम्य व्यक्ति थे।
Siyaram sharan gupt
सियाराम शरण गुप्त

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