हमारे कृषक - रामधारी सिंह दिनकर | Our Farmers - Ramdhari Singh Dinkar

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है 

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है 
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है 

बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं 
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं 

पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना 
चूस-चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना 

विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती 
अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती 

कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है 
दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है 

दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है 
दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं 

दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे 
दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे 

दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से 
दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से 

हटो व्योम के, मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं 
दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं.




लेखक के बारे में
रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल१९७४हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे।[1][2] वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था।

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