हिमालय - सोहनलाल द्विवेदी | Himalaya - Sohanlal Dwivedi (प्रेणादायक कविता)


युग युग से है अपने पथ पर 
देखो कैसा खड़ा हिमालय! 
डिगता कभी न अपने प्रण से 
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय! 

जो जो भी बाधायें आईं 
उन सब से ही लड़ा हिमालय, 
इसीलिए तो दुनिया भर में 
हुआ सभी से बड़ा हिमालय! 

अगर न करता काम कभी कुछ 
रहता हरदम पड़ा हिमालय 
तो भारत के शीश चमकता 
नहीं मुकुट–सा जड़ा हिमालय! 

खड़ा हिमालय बता रहा है 
डरो न आँधी पानी में, 
खड़े रहो अपने पथ पर 
सब कठिनाई तूफानी में! 

डिगो न अपने प्रण से तो –– 
सब कुछ पा सकते हो प्यारे! 
तुम भी ऊँचे हो सकते हो 
छू सकते नभ के तारे!! 

अचल रहा जो अपने पथ पर 
लाख मुसीबत आने में, 
मिली सफलता जग में उसको 
जीने में मर जाने में!
लेखक के बारें में
सोहन लाल द्विवेदी (22 फरवरी 1906 - 1 मार्च 1988) हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि थे। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित, द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था।

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